मंगलवार, 10 अगस्त 2010

रक्षा बंधन पर अपने भाई की कलाई पर राखी बंधती चली आ रही श्रृष्टि और मुस्कान के हांथो में इस बार राखी नहीं बल्कि बूट पोलिश है. जिसके सहारे वो अपने बही की जिंदगी बचने निकल पड़ी है. उन्हें खुद नहीं पता की वो अप्लास्टिक एनेमिया से पीड़ित भाई के लिए कुछ कर पाएंगी या नहीं लेकिन उनकी जंग जरी है. इस रक्षा बंधन पर वो अपने भाई को राखी के त्यौहार पर उसे नई जिंदगी देना चाहती है.
मुस्कान की उम्र महज दस साल है और श्रृष्टि की उनर बारह साल की है. उनके पिता मनीष बहल एक मोटर मेकेनिक है. उनके पास इतने रुपए नहीं है की वो अपने चौदह साल के बेटे अनुज का इलाज करवा सके. दोनों बहने स्कूल से आने के बात बैग रखती है और हाथो में बूट पोलिश लेकर निकल पड़ती है. शाम को  कानपूर की गलियों में इन्हें किसी के जूतों में पोलिश करते देखा जा सकता है.
मैंने जब इन बहनों को लोगो के आगे बिलखते देखा तो मई भी अपने आंसू नहीं रोक पाई. मैंने इनकी फोटो खींची और अपने पेपर में इनकी खबर पब्लिश की. इन्हें देखकर कई लोग सहानभूति दिखने आये लेकिन मदद को कुछ एक लोग ही आगे आये. जिन्दगी में मुझे पहली बार महसूस हुआ की भगवन ने मुझे ढेर सारा रुपया क्यों नहीं दिया?