शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

जिंदगी.......

हर पल यहाँ जी भर जियो...........

मुझे बहोत गंभीर बीमारी है. मेरे मम्मी पापा क़ि मौत भी इसी बीमारी से हुई है. हो सकता है कुछ दिनों बाद मै भी इस दुनिया में न रहूँ. मै कब भगवान जी के पास चला जाऊंगा लेकिन मै जिन्दा रहना चाहता हूँ ताकि अपने जैसे लोगो क़ि मदद कर सकूँ.

ये शब्द है मात्र नौ साल के उस बच्चे के जो HIV पोजिटिव है. और वो अपनी उम्र से ज्यादा बड़ा हो गया है. एक दिसंबर को यह बच्चा अपने चाचा के साथ कानपुर मेडिकल कॉलेज में अपने बारे में बता कर लोगो को इस बीमारी से लड़ने के लिए मोटिवेट  कर रहा था. अमन नाम के इस बच्चे को याद भी नहीं के उसके पिता को कहाँ से और कैसे यह वायरस मिला और यह वायरस होता क्या है. पूछने पर उसने बताया क़ि उसके पापा को कोई गंभीर बीमारी थी जिसका इलाज संभव नहीं था. और यह बीमारी उनसे उसकी मम्मी को हुई और फिर उसे. उसने बताया क़ि वो बड़ा होकर गरीबों और असहाय लोगो के लिए कुछ करे. वो कहता है क़ि उसका यह सपना कभी पूरा नहीं हो सकता. क्योकि उसकी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं. पूछने पर क़ि उसे दर नहीं लगता उसने कहा दर लगता था जब पापा के बाद मम्मी को भी भगवान् ने बुला लिया पर डॉक्टर अंकल ने सारा दर निकाल दिया.
ये बच्चा डोक्टोर्स के साथ मिलकर लोगो को मोटिवेट करता है. उसकी बातें सुनकर मेरी आँखों में आंसू आ गए पर उसकी बातों और चेहरे पर कहीं भी कोई शिकन नहीं थी............

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

khanna ji ka ghosla........

परिंदों के लिए बनाते आशियाना........

आशियाने क़ि ख्वाहिश इंसानों को ही नहीं बल्कि आसमान में उड़ने वाले परिंदों को भी होती है. तिनका तिनका जोड़कर अपना घरोंदा बनाने वाले परिंदे दिन ब दिन घटते जा रहे है. कारण उन्हें अपना घरोंदा बनाने के लिए अब न तो तिनके मिलते है और न ही पेड़ पर कानपुर शहर में एक ऐसा इंसान भी है जिसने बेघर होते इन परिंदों के लिए आशियाना बनाने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी.  वो दस सालों में हजारों परिंदों को आशियाना दे चुके है वही विलुप्त होती गौरैया जैसी सपेसीस को भी बचाया है. उनकी पोपुलारिटी देश विदेश तक फ़ैल चुकी है. उन्हें लोग घरोंदा वाले अंकल कहकर पुकारते है. आइये मिलते है घरोंदा वाले अंकल से...........


बैंक ऑफ़ बड़ोदा में सीनियर मनेजर रहे सी एल खन्ना क़ि बेटी और बेटे क़ि शादी के बात दोनों दंपत्ति अकेले हो गए. मिस्टर खन्ना के ऑफिस जाने के बात उनकी पत्नी मधु का मन घर पर बने चिड़िया के घोसले से बहलता. वो आती जाती चिड़िया को देखकर खुश हो जाती. खन्ना जी भी ऑफिस से आने के बात चिड़िया क़ि और उसके घोसले क़ि बात करते. चिड़िया के अंडे देने के बात उसके बच्चे निकलने का इंतज़ार होने लगा. लेकिन एक दिन तेज़ हवा के झोंके ने घोसला गिरा दिया और अंडे फूट गए. दोनों पति पत्नी को लगा जैसे उनके किसी परिवार के सदस्य क़ि death हो गयी हो. टूटे अण्डों के आस पास मंडराती चिड़िया क़ि आवाज ने उन्हें परेशान कर दिया. दोनों लोग रात भर चिड़िया क़ि ही बातें करते रहे और पूरी रात सो न सके.
छोड़ दी नौकरी
खन्ना जी दूसरे दिन ऑफिस गए पर उनका मन नहीं लगा. वो सोचते रहे क़ि इस तरह कितने ही चिड़िया के अंडे टूट कर इस तरह बिखर जाते होंगे? क्या करे क़ि वो चिड़िया को बचा सके? उन्होंने नौकरी से वीआरस ले लिया. और घर में लकड़ी का घर बना कर लगाया. उसमे चिड़िया ने अंडे दिए और उसमे से बच्चे निकल कर बड़े होने के बाद खुले आसमान में उड़ गए
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शुरू हुआ सिलसिला.....
इसके बाद शुरू हुआ खन्ना जी का घोसला बनाने का सिलसिला. आज तक वो हजारों परिंदों को आशियाना दे चुके है. शहर में एक दर्ज़न से ज्यादा जगहों पर  उनके बनाये हुए घरोंदे  लगे है. यही नहीं newziland में रहने वाली उनकी बेटी ने यह घरोंदे ले जाकर अपने घर पर लगाये तो कई लोगो ने उससे डिमांड की और देकते ही देखते वहां भी दर्ज़नो क़ि संख्या में घरोंदे लग गए.
खुद का खर्चा देते फ्री
इस  घरोंदे को बनाने के लिए वो बाज़ार से फलों क़ि पेटी बाज़ार से लेकर आते है और दिन भर  घर पर बैठ कर घरोंदा बनाते है. एक घरोंदा बनाने में उनका  पचास रुपए का खर्चा आता है और दिन भर में मात्र एक घरोंदा बनाकर तैयार कर पते है. इसके बाद भी वो लोगों को ये घरोंदे एकदम फ्री में देते है. लोग उन्हें घरोंदे वाले अंकले के नाम से पुकारते है.


कुछ सीखे हम इनसे........
आज के समय में जहाँ एक परिवार के लोग साथ में एक छत के नीचे रहना पसंद नहीं करते. वही खन्ना जी एक घरोंदे में फक्ता और गौरैया चिड़िया एक साथ रहते है. उन्होंने 2001 में यह घोसला बनाया था. तब से आज तक उसमे 38 बार चिड़ियों ने अंडे किये है. इस घरोंदे के नीचे गौरैया तो ऊपर क़ि ओर फक्ता अंडे देती है.

रविवार, 14 नवंबर 2010

stories of courage


हौसले क़ि कभी हार नहीं होती.....

जिंदगी तो सभी जीते है लेकिन असली जीवन उनका होता है जो कभी हार नहीं मानते. बात चाहे अन्याय से लड़ने क़ि हो या हक क़ि आवाज बुलंद करने क़ि. पिछले दिनों शहर में कुछ ऐसी ही महिलाओ से मेरा सामना ऐडवा के सम्मेलन में हुआ. पूरा सम्मेलन चाहे राजनीति से प्रेरित रहा हो लेकिन उसमे आई महिलाओं के संघर्ष की कहानी आँखों में आंसू लाने के लिए काफी थी.....लेकिन वो जिन परिस्थितियों का सामना करके आई थी वो सलाम करने लायक था.....
तो हो जाती ओनर किलिंग का शिकार..........
सीमा उस शहर हरियाणा से थी जहाँ ओनर किलिंग के सबसे जयादा मामले होते है. उसने बताया की हरियाणा में ओनर किलिंग के बाद  उसे रेप का नाम दे दिया जाता है.  वहां हर रोज एक बलि हो जाती है. कुछ मामले मीडिया में आते है तो कुछ गुपचुप निपट जाते है. इसी ओनर किलिंग का शिकार होने से वो भी बची. उसने बताया की वो कैथल इलाके में रह रही थी. पढाई के दौरान उसकी फ्रेंडशिप एक लड़के से हुई. दोनों शादी करना चाहते थे पर घरवालों को ये मंजूर नहीं था. उन्हें पता चला तो उन्होंने सीमा को घर में कैद कर दिया. उसके साथ  तीन महीने तक जुल्म की इन्तहां की गयी. एक दिन चाचा और पापा ने उसे जान से मरने का प्लान बनाया. उसकी माँ ने सुन लिया और उन्होंने उसे भगा दिया. भागकर वो दूसरे शहर आ गयी. यहाँ उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. उसे हर वक्त लगता की उसे कोई मार देगा. वो रातों को सो नहीं पति थी. एक दिन उसने जीना है तो लड़ना होगा आर्टिकल पढ़ा. उसके बाद उसने लड़ने की सोची. आज वो हरियाणा में ही इज्जत के नाम पर अपराधो के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है.
बच्चो को भूखा देख कलपती थी आत्मा....................
 पश्चिम बंगाल की फुलौरा मंडल ने बताया की दो साल पहले उसके गाँव मिदनापुर में मओवादियो का कहर था. देर सवेर गाँव में आकर औरतों और बच्चो के साथ बदसलूकी करके झोपड़ियों में आग लगा देना उनके लिए खेल था. घरों की आग बुझने के बाद बच्चो की पेट की आग बुझाना कठिन होता था क्यूंकि घर राख हो चुके होते थे. बच्चो की भूख से बिलख देखना मजबूरी होती. उसे 14 जून 2009 की वो रात आज भी याद है. जब माओवादियों ने दो हजार घर जला दिए. हर तरफ फैला सन्नाटा और बस उस सन्नाटे को चीरती लोगों की चीखों ने उसे जक्झोर दिया. उसने लड़ने का मन बनाया. उन जले हुए दो हजार घरों की महिलाओं को उसने एकजुट किया. आज भी वो अपने आशियाने और बच्चो को बचाने की लड़ाई लड़ रही है.
अनपढ़ है लल्ली पर................
यूपी के इलाहाबाद की लल्ली गाँव में डलिया बनाकर अपने घर का गुजर कर रही थी. उसका सपना था की उसका खुद का एक घर हो. जीवन के 45 साल झोपड़ी में गुजरने के बाद उसे एक आशा की किरण दिखाई दी. इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत एक कमरे की जगह वाले उसके घर को पक्का बनाया गया. गाँव के कुछ जमींदारों को बर्दाश्त न हुआ. उन्होंने उसका अध्सूखा घर तोड़ दिया. विरोध करने पर उसके पति और बेटे को पीट कर अधमरा कर दिया. पूरे गाँव के सामने उसे नंगा करके पीटा गया. उसके चेहरे पर यूरीन कर वो निकल गए. गाँव में उनके खौफ के चलते किसी ने भी विरोध नहीं किया. होश आने पर लल्ली थाने गयी पर किसी ने उसकी सुनवाई नहीं की.  मामला मीडिया में आया पुलिस पर प्रेशर पड़ा तो उन्होंने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. दो महीने बाद वो छूटकर आये तो उन्होंने फिर से लल्ली के परिवार को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. लल्ली ने आवाज बुलंद की. घर आये दबंगों को उसने गडासा लेकर भगा दिया. वो कहती है की " हम मर जैबे लेकिन अपन जमीन न देबे, अपन लड़ाई हम खुद लडिबे चाहे कोऊ साथ दे या न दे हम उनकर मूड उतार लेब."

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

मै लड़की थी इसलिए........
बेटा बेटी एक सामान. बेटियां  अन्तरिक्ष में जा रही है, एवरेस्ट पर चढ़ रही है, वो  हमारे देश का नाम रोशन कर  रही है. आज बेटियों और बेटो में कोई फर्क नहीं रह गया है.
ये साड़ी बातें कितनी बेमानी लगती है. आज भी हमारे पढ़े लिखे समाज में लोगो क़ि सोच नहीं बदली है. बेटों के लिए लोग कितना परेशां रहते है. उन्हें बेटा चाहिए होता है. आज भी आये दिन सडको पर बेटियों को फेंक किया जाता है. पिछले दिनों शहर में जो देखा सच में उसने मुझे परेशां कर दिया.
7 अक्टूबर को यशोदा नगर में जुड़वाँ बच्चो को कोई फेंक गया. सुबह एक कबाड़ी वाले को वो बच्चे दिखे. धीरे धीरे वहां भीड़ जुट गयी. बच्चो में एक लड़का था और एक लड़की. लड़का देख कर उसे लेने वालो का वहां ताता लग गया. लोगो में झगडा होने लगा. लड़के के पांच दावेदार हो गए. कबाड़ीवाले से लेकर एक बड़े कपडा व्यापारी तक सक उसे लेने के लिए खुद को बेहतर और बेहतर परवरिश करने वाला बताने लगे. उस बच्चे को कभी कोई अपनी गोद में रखता तो कभी कोई ले लेता जबकि वो बच्ची कबाड़ी वाले के ठेले पर पड़ी रही. तेज धूप और भूख  से  वो बच्ची तड़प रही थी. उसे रोने क़ि आवाज किसी के कानो को नहीं भेद रही थी. उन्हें तो बस लादे को लेने क़ि धुन थी.  उस लड़के को लेने के लिए लोगों में मारपीट क़ि नौबत आ गयी. कुछ लोगो में धक्का मुक्की तक हुई. लास्ट में पुलिस के हस्तक्षेप के बाद उस लड़के को एक बड़े कपडा व्यापारी को दे दिया गया. उसकी एक ग्यारह साल क़ि बेटी थी. उसे बेटा चाहिए था पर उसकी पत्नी  मेडिकली अनफिट थी.
लड़के के जाने के बाद पुलिस वाले उस बच्ची को थाने में रखे रहे.  उसका मासूम चेहरा शायद हर किसी से यही सवाल पूछ रहा था क़ि उसे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? उसे किसी ने गोद क्यों नहीं लिया? क्या वो बोझ थी? इन्ही सारे सवालों के साथ जब शाम को उसे शहर के हिन्दू अनाथालय ले जाया गया तो उसके सारे सवालो का जवाब उसे मिल गया था क्यों क़ि वो वहां अकेली नहीं थी. वहां उसके जैसी दर्जनों बच्चियां थी जिन्हें सडको पर मरने के लिए छोड़ दिया गया और किसी ने उन्हें सहारा नहीं दिया. उसकी सहेलिया बनी शहर में सडको पर एक साल के अन्दर मिली सात बच्चियां.

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

क्या कसूर था इसका???????????

गौर से देखिये इस मासूम बच्ची को.... इसकी उम्र महज नौ साल है. इसका नाम अनुष्का है. ये अब इस दुनिया में नहीं है. यह आपको बहुत आम बात लग रही होगी की अनुष्का अगर दुनिया में नहीं है तो इसमें ख़ास बात क्या है? मैंने इसे अपने ब्लॉग का हिस्सा क्यों बनाया लेकिन अनुष्का की कहानी सुनकर आप भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जायेंगे.
अनुष्का का  पिछले  29 अक्टूबर को स्कूल के अन्दर  रेप किया गया वो भी अप्राकृतिक. उसकी हालत देख कर पोस्ट मार्टम करने वाले डॉक्टर भी रो पड़े.
अनुष्का की माँ सोनू  रोज की ही तरह अनुष्का को स्कूल छोड़कर आई और अपनी नौकरी पर चली गयी. दोपहर को अनुष्का और उसकी छोटी बहन दीक्षा साथ में ही लौटते थे. उस दिन स्कूल की छुट्टी दोपहर एक बजे की जगह ग्यारह बजे कर दी गयी. दीक्षा को ये कह कर घर भेज दिया गया की अनुष्का की तबियत ख़राब है और वो अकेली ही घर चली जाये. रिक्शे वाला दीक्ष को घर छोड़ गया. दोपहर बारह बजे अनुष्का की माँ को फोन करके उसे ले जाने को कहा गया. जब अनुष्का की माँ स्कूल पहुची तो अनुष्का को घर भेज देने की बात कही गयी. घर आने पर मोहल्ले वालों ने बताया की अनुष्का को स्कूल की आया और दो आदमी घर के बहार फेक गए थे. वो बेहोश थी इसलिए मोहल्ले के कुछ लोग उसे लेकर हॉस्पिटल गए है. इधर अनुष्का की माँ हॉस्पिटल पहुची. उस दिन IMA की strike के चलते किसी हॉस्पिटल ने उसे admit नहीं किया. उसकी माँ doctors के आगे हाँथ जोडती रही पर किसी को तरस नहीं आया. जब तक वो सरकारी हॉस्पिटल पहुचती उसकी death हो चुकी थी. hallet हॉस्पिटल से उसे brought dead बताकर वापस कर दिया गया. किसी को नहीं पता था की अनुष्का की मौत कैसे हुई. अनुष्का के माँ खुद को संभाल नहीं पा रही थी. मोहल्ले वाले दिलासा देने घर आये. अनुष्का दी छोटी बहन ने खेल खेल में जब उसका बैग खोला तो उसमे खून से सने हुए अनुष्का के कपडे भरे थे. उसकी माँ की नजर पड़ी तो वो भाग कर गयी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने चादर में लिपटी  अनुष्का को खोला तो दांग रह गयी. वो खून से लतपथ थी. उसका रेप हुआ था. रेप  के बाद उसकी ब्लीडिंग रोकने के लिए कपडा ठूस, टेप लगा दिया गया था. पोस्ट मार्टम में अनुष्का के साथ अप्राकृतिक रेप क़ि पुष्टि हुई. उसका शरीर के अंग दांतों से चबाये गए थे. पुलिस कंप्लेंट हुई. अब investigation चल रहा है. स्कूल प्रबंधन पुलिस क़ि गिरफ्त में है. लेकिन अभी तक कुछ प्रूफ न हो पाने के कारण पुलिस अपने को असहाय बता रही है. अब अनुष्का क़ि माँ छोटी बेटी दीक्षा को न तो पढ़ना चाहती है और न ही उसे घर के बहार निकलने देना चाहती है.............. क्या अनुष्का के साथ दरिंदगी करने वाले को सजा मिलेगी?????????????

अनुष्का क़ि माँ.....

रविवार, 26 सितंबर 2010

हर निगाह करती थी मेरा रेप...


उस दरिन्दे ने तो मेरा एक बार रेप किया लेकिन अब  समाज की हर नजर मेरा रेप करती है.  मै एक जिन्दा लाश बन चुकी हूँ. अगर ये लाश भी आप लोगो को अखर रही हो तो बता दीजिये में इसे भी कही बहा दूँ.

ये शब्द शायद आपको कुछ अटपटे लगे,  मुझे भी लगे थे लेकिन उसके साथ जो हुआ उसके आगे ये शब्द बहोत छोटे है.
हम रेप की ख़बरें हमेशा अखबारों में पढ़ते है. मै भी कई बार इस तरह की घटनाओ के बारे में लिख चुकी हूँ. रेप की खबरें छपती है और दो चार दिनों में लोग भूल जाते है. न तो लोगो को और न ही रिपोटर,  किसी को एक बार ख्याल नहीं आता की वो लड़की आज किस हाल में होगी जो कभी रेप का शिकार होने के बाद न्यूज़ पेपर्स की सुर्खियाँ रही है. यही सोचकर मै तीन साल पहले रेप का शिकार हुई लड़की से मिलने का मन बनाया. मै तीन साल पीछे गई.

मुझे  याद है वो दिन. एक महिला संगठन के साथ वो लड़की आई थी. महिला थाने में. उसके पूरे शारीर पर गहरे घाव थे. उसका शारीर उसके साथ हुई हैवानियत साफ़ बयां कर रहा था. मैंने जब उससे पुछा तो कपकपाती आवाज से उसने जो बताया सच में रूह कंपा देने वाला था. उसने इंटर पास किया था और वो आगे की पढाई नौकरी के साथ करना चाहती थी. क्योकि उसके पापा का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था और मम्मी में घरो में काम करके उसे पढाया था. एक पेपर में add  देखकर वो रावतपुर के रेव थ्री में interview देने पहुची. लेट होने के कारन उसका interview नहीं हो सका. उसकी आँखों में आंसू आ गए. पास खड़े एक लड़के ने उससे रोने का कारण  पूछा  उसने उसे सच बता दिया. उस लड़ने ने उसे वन विभाग में नौकरी दिलाने का झांसा दिया और से टेम्पो में लेकर वहां से निकला. दुनिया के छल से अनजान वो उसके साथ चल दी. रस्ते में उसकी इच्छाए उड़ान भर रही थी उसने तो यहाँ तक सोच लिया की अब वो अपनी माँ को घरो में काम भी नहीं करने देगी. शाम होने के कारण अँधेरा हो रहा था. वो लड़का उसे गुरुदेव के पास वन विभाग के जंगल में ले गया. वहां उसने उसके दुपट्टे से उसके हाँथ बांध दिए और अपनी रुमाल उसके मुह में ठूंस दी. उसके शारीर को किसी जानवरों की तहर दांतों से काटा. उसका रेप करने के बाद पास पड़े लोहे के तारों से उसका गला कास दिया और वहां से भाग निकला. शायद इश्वर को कुछ और ही मंजूर था इतने के बाद भी वो जिन्दा बच गयी. रात भर वो वही तड़पती रही सुबह जब होश आया तो सँभालने वाला कोई नहीं था. किसी तरह वो वहां से घिसटती हुई सड़क तक आई. एक टेम्पो वाले को उसपर दया आई और वो उसे घर तक छोड़ गया. उसकी माँ पुलिस के पास गयी पुलिस वालो ने उसका मजाक बनाकर उसे वहां से भगा दिया. तब एक महिला संगठन की मदद से मामला दर्ज हुआ. रेव थ्री विडिओ फुटेज से उसने उस दरिन्दे को पहचाना. पुलिस ने उसे पकड़ लिया.
आज तीन साल से मुकदमा चल रहा है. वो मुस्कुराता चेहरा मुरझा गया है. किसी से मिलना, बात करना और मुस्कुराना तो दूर की बात है, उसकी दुनिया उसका छोटा सा कमरा है. उसने खुद को कमरे में उस रेप की घटना के कारण नहीं बल्कि इस समाज के कारण कैद किया है. वो कहती है की उस दरिन्दे ने मेरा रेप तो एक बार किया लेकिन उसके बाद समाज की हर नजर जो उसे देखती उसका बार बार रेप करती लोग उसे इस तरह देखते जैसे उसने खुद कोई गुनाह किया हो. वो आज खुद को एक जिन्दा लाश मान चुकी है. वो किसी से नहीं मिलना चाहती.  वो कहती है की वो सिर्फ उस दिन का इन्तजार कर रही है जब उसके गुनाहगार को फांसी की सजा दी जाएगी.

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

रक्षा बंधन पर अपने भाई की कलाई पर राखी बंधती चली आ रही श्रृष्टि और मुस्कान के हांथो में इस बार राखी नहीं बल्कि बूट पोलिश है. जिसके सहारे वो अपने बही की जिंदगी बचने निकल पड़ी है. उन्हें खुद नहीं पता की वो अप्लास्टिक एनेमिया से पीड़ित भाई के लिए कुछ कर पाएंगी या नहीं लेकिन उनकी जंग जरी है. इस रक्षा बंधन पर वो अपने भाई को राखी के त्यौहार पर उसे नई जिंदगी देना चाहती है.
मुस्कान की उम्र महज दस साल है और श्रृष्टि की उनर बारह साल की है. उनके पिता मनीष बहल एक मोटर मेकेनिक है. उनके पास इतने रुपए नहीं है की वो अपने चौदह साल के बेटे अनुज का इलाज करवा सके. दोनों बहने स्कूल से आने के बात बैग रखती है और हाथो में बूट पोलिश लेकर निकल पड़ती है. शाम को  कानपूर की गलियों में इन्हें किसी के जूतों में पोलिश करते देखा जा सकता है.
मैंने जब इन बहनों को लोगो के आगे बिलखते देखा तो मई भी अपने आंसू नहीं रोक पाई. मैंने इनकी फोटो खींची और अपने पेपर में इनकी खबर पब्लिश की. इन्हें देखकर कई लोग सहानभूति दिखने आये लेकिन मदद को कुछ एक लोग ही आगे आये. जिन्दगी में मुझे पहली बार महसूस हुआ की भगवन ने मुझे ढेर सारा रुपया क्यों नहीं दिया?

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

खतरें में विदेशी मेहमान


ये वो विदेशी मेहमान है वो दूर देश से खाने की तलाश में उत्तर भारत में आते है. हजारो मील लम्बी दूरी तय करके ये तीन से चार महीने उत्तर बहरत में बिताते है. सालो से यूही आ रहे ये विदेशी मेहमान अब सुरक्षित नहीं.
कानपुर के पास नवाबगंज और एलेंफोरेस्ट जू में आने वाले इन मेहमानों पर शिकारियों की नजर है. फोरेस्ट डिपार्टमेंट की अनदेखी से ये बेचारे बेजुबान पक्षी बेमौत मरे जा रहे है. साइबेरिया व मिडिल ईस्ट एशिया में ठण्ड के दिनों में भरी स्नो फाल से इन्हें वहां खाना नहीं मिलता जिक्ति तलाश में ये यहाँ आते है. कानपुर के पास इटावा में इनका शिकार हो रहा है. यही हाल कानपुर का भी है. इन विदेशी मेहमानों की न तो फोरेस्ट डिपार्टमेंट कोई गिनती करता है और न ही कोई सुरखा के इंतजाम. एक तरफ तो पर्यावरण बचने का डंका पीता जाता है वही दूसरी तरफ लाखो की संख्या में आने वाली ये बिर्ड्स असुरक्षित है.

सोमवार, 18 जनवरी 2010



गंगा मैया की सफाई के लिए प्रदेश सरकार ने जन जागरण की शुरुआत कानपुर में सत्रह जनवरी से की। कानपुर में हुए एक भव्य समारोह में नगर विकास मंत्री नकुल दुबे सामिल हुए। लोगो को नजीर पेश कने के लिए उन्होंने गंगा जी में मछलिया छोड़ी। शायद वो इस ख़ुशी में भूल गए की वो क्या कर गए। उन्होंने मछलियों के साथ पोलिथीन भी गंगा मैया में बहा दी। इस दौरान किसी की भी हिम्मत नहीं हुई की मंत्री जी को रोक सकता जबकि शहर का सारा अद्मिनिस्त्रतिओन मजूद था.

आम आदमी, ख़ास आदमी






भारतीय लोकतंत्र जिसके बड़े बड़े kaside  gadre  जाते है। पूरे विश्व में दावा किया जाता है की यह लोकतंत्र हमारी सुरक्षा के लिए है। लेकिन इस लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वालो का चेहरा इतना घिनौना हो सकता है। जी हाँ दो जनवरी को कानपुर के पास कापली में हुए ट्रेन हादसे में एक ऐसा ही राजनीती का गन्दा चेहरा सामने आया। प्रयाग राज व गोरखधाम एक्सप्रेस में हुई इस टक्कर में तेरह लोगो की मौत हुई और पचास लोग घायल हुए। इसी प्रयाग राज एक्सप्रेस में भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी भी बैठे थे। घटना की जानकारी होते ही आनन् फानन में उन्हें ट्रेन से उतारकर चंद कदमो की दूरी पर स्थित एक इंजीनियरिंग कॉलेज में ले जाया गया। उन्होंने घटना स्थल तक जाना भी मुनासिब नहीं समझा। इंजीनियरिंग कॉलेज में उनके नाश्ते के इंतजाम थे। जहाँ एक और चीखें गूँज रही थी वाही नेता जी हंसी के ठहाके लगा रहे थे। आस पास गाँव के लोग तो मदद को आये लेकिन अपने लाबो लश्कर के साथ नेता जी सुरक्षी बैठे रहे। नाश्ते के बाद उन्होंने पूरे कॉलेज का निरिक्षण किया और कॉलेज की एक बिल्डिंग का लोकार्पण भी किया। उन्होंने कॉलेज में लगभग एक घंटा बिताया पर लोगो की चीक पुकार उनके कानो तक नहीं पहुची.

बुधवार, 13 जनवरी 2010


नमस्कार, मैं आपकी शशी अब आपके बीच अपने ब्लॉग के जरिये अपनी बातें पहुचाने की कोशिश करूंगी। वैसे मैं एक पत्रकार हूँ, लेकिन आज के माहोल में कलम खुद आजाद नही रह गयी है, जो आपनी सारी
बातें मैं अखबार में लिख सकू, इसीलिये मैंने अपने ब्लॉग को आपने विचारों को आप तक पहुचाने का जरिया बनाया है,