मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

मै लड़की थी इसलिए........
बेटा बेटी एक सामान. बेटियां  अन्तरिक्ष में जा रही है, एवरेस्ट पर चढ़ रही है, वो  हमारे देश का नाम रोशन कर  रही है. आज बेटियों और बेटो में कोई फर्क नहीं रह गया है.
ये साड़ी बातें कितनी बेमानी लगती है. आज भी हमारे पढ़े लिखे समाज में लोगो क़ि सोच नहीं बदली है. बेटों के लिए लोग कितना परेशां रहते है. उन्हें बेटा चाहिए होता है. आज भी आये दिन सडको पर बेटियों को फेंक किया जाता है. पिछले दिनों शहर में जो देखा सच में उसने मुझे परेशां कर दिया.
7 अक्टूबर को यशोदा नगर में जुड़वाँ बच्चो को कोई फेंक गया. सुबह एक कबाड़ी वाले को वो बच्चे दिखे. धीरे धीरे वहां भीड़ जुट गयी. बच्चो में एक लड़का था और एक लड़की. लड़का देख कर उसे लेने वालो का वहां ताता लग गया. लोगो में झगडा होने लगा. लड़के के पांच दावेदार हो गए. कबाड़ीवाले से लेकर एक बड़े कपडा व्यापारी तक सक उसे लेने के लिए खुद को बेहतर और बेहतर परवरिश करने वाला बताने लगे. उस बच्चे को कभी कोई अपनी गोद में रखता तो कभी कोई ले लेता जबकि वो बच्ची कबाड़ी वाले के ठेले पर पड़ी रही. तेज धूप और भूख  से  वो बच्ची तड़प रही थी. उसे रोने क़ि आवाज किसी के कानो को नहीं भेद रही थी. उन्हें तो बस लादे को लेने क़ि धुन थी.  उस लड़के को लेने के लिए लोगों में मारपीट क़ि नौबत आ गयी. कुछ लोगो में धक्का मुक्की तक हुई. लास्ट में पुलिस के हस्तक्षेप के बाद उस लड़के को एक बड़े कपडा व्यापारी को दे दिया गया. उसकी एक ग्यारह साल क़ि बेटी थी. उसे बेटा चाहिए था पर उसकी पत्नी  मेडिकली अनफिट थी.
लड़के के जाने के बाद पुलिस वाले उस बच्ची को थाने में रखे रहे.  उसका मासूम चेहरा शायद हर किसी से यही सवाल पूछ रहा था क़ि उसे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? उसे किसी ने गोद क्यों नहीं लिया? क्या वो बोझ थी? इन्ही सारे सवालों के साथ जब शाम को उसे शहर के हिन्दू अनाथालय ले जाया गया तो उसके सारे सवालो का जवाब उसे मिल गया था क्यों क़ि वो वहां अकेली नहीं थी. वहां उसके जैसी दर्जनों बच्चियां थी जिन्हें सडको पर मरने के लिए छोड़ दिया गया और किसी ने उन्हें सहारा नहीं दिया. उसकी सहेलिया बनी शहर में सडको पर एक साल के अन्दर मिली सात बच्चियां.

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