बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

जीवन..........

वो पागल है फिर भी..........
कैंट से जाजमऊ जाने वाली रोड पर मै जा रही थी. धूप बहोत तेज थी. मै फोन करने के लिए अपनी गाड़ी किनारे छाया में लगा कर फोन मिलाने लगी. मेरी नजर सामने कूड़े के ढेर पर बैठे  तीस-बत्तीस साल के एक व्यक्ति पर पड़ी.  उसके दोनों पैरो में गहरे घाव थे. उन घाव पर सैकड़ों मक्खियाँ बैठी थी. कुछ मक्खियाँ उन घावो के ऊपर मंडरा रही थी, उन घावों में उनके बैठने क़ि जगह नहीं थी, शायद वो अपनी बार का  इंतज़ार कर रही थी. बीच- बीच में वो अपने गंदे हांथों से उन्हें उड़ाता पर मक्खियाँ उड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी. उसने अपनी गन्दी सी गठरी खोलकर उसमें से एक पोलिथीन निकली और फिर उसमे रक्खे कुछ पत्तल चाटकर फेंकने लगा. अचानक उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी. उसे देखकर लगा वो बहोत गुस्से में है. लेकिन पल भर में ही मुझे उसकी आँखों में एक डर नजर आया. शायद उसे लग रहा था क़ि या तो मै उसे कुछ कहूँगी या उसका खाना छीन लूंगी. उसने जल्दी से सरे पत्तल समेटकर उसी पोलिथीन में भर लिए. उसने मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुराया.
उस सड़क से सैकड़ो लोग गुज़र रहे थे पर कोई उसकी तरफ नहीं देख रहा था. उसे देखकर मै परेशान थी. वो परेशानी क्या थी मुझे नहीं पता? मै क्या सोच रही थी मै ये भी नहीं जानती. लेकिन न जाने क्यों मेरी आँखे उस पर से हट नहीं पा रही थी. पीछे खड़े जूस के ठेले वाले ने मेरे पास आकर कहा ''वो पागल है मैडम क्या हुआ? इसको जानती है क्या? पता नहीं कहाँ से आया है इसको लगभग एक साल हो गए.'' अचानक जैसे मेरी नींद टूटी हो मैंने गाड़ी स्टार्ट क़ि और वहां से चली आई. मै पूरा दिन परेशां रही और देर रात तक बस उसके बारे में ही सोचती रही. उसे इतने. गहरे घाव... तेज धूप में कूड़े के ढेर पर बैठा...उसके पास खाने को खाना तक नहीं......फिर भी उसे न तो कोई दर्द था न ही कोई शिकायत. हां शायद वो पागल था इसलिए........