मंगलवार, 31 मई 2011

दोषी कौन? 

हम आज चाहे कितना भी आगे बढ़ने क़ि बात करते हो लेकिन हमारे समाज क़ि मानसिकता आज भी नहीं बदली. शायद बदल भी नहीं सकती. लड़कियों के लिए समाज जैसा सालो पहले था वैसा आज भी है.


अभी हाल ही में कानपुर के कल्यानपुर थाने के पास एक घटना घटी. घटना बहोत बड़ी थी. दो लड़कियां अपने हॉस्टल से कानपुर यूनिवर्सिटी के लिए निकली. वो पैदल ही चौराहे क़ि तरफ आ रही थी. तभी पीछे से आ रही एक कार में बठे दो लडको ने उन पर कुछ कमेन्ट किया. लड़कियां आगे बढ़ी तो उन्होंने पीह करना शुरू कर दिया और आगे जाकर उन्हें गाड़ी में खीचने क़ि कोशिश की लड़कियां चीखी तो लड़कों ने मुह बंद करके उन्हें पीटा और गाड़ी से फेक कर भाग गए. लड़कियों ने पुलिस को खबर दी और पुलिस वालों ने उन्हें चौराहे पर पकड़ लिया. लड़कियों ने तहरीर दी और मीडिया ने दूसरे दिन उनकी बहादुरी की ख़बरें लिखीं. मुझे भी बहोत अच्छा लगा की शहर में दो लड़कियां उन वहशियों का शिकार होने से बच गयी.........

अभी जरा रुकिए ये बात यहीं ख़तम नहीं हुई. इसके आगे जो हुआ वो शायद आपको भी सोच में डाल दे. अगले दिन मैंने उन लड़ियों का स्पेशल interview लेकर पेपर में छपने की सोची मैंने सोचा की खबर पड़कर दूसरी लड़कियां इंस्पायर होगी. जब मै हॉस्टल पहुची तो उन लड़कियों के रूम पर ताला लटक रहा था. पूछने पर पता चला की उनके घर वाले आकर उन्हें ले गए. वो उन लड़कियों पर गुस्सा कर रहे थे. उन्होंने उनकी पढाई तक बंद करने की बात कही है.  मैंने बगल वाले रूम की लड़की से नंबर लेकर एक लड़की को फोन लगाया. फोन उसके पिता ने उठाया और मेरे ऊपर बिफर पड़े. बोले न तो उन्हें और न ही उनकी बेटी को मीडिया में आने का कोई शौक है. बहोत ज्यादा बदने हो चुकी है. अब वो उसकी पढाई बंद करा रहे है. मैंने उन्हें बहोत समझाने की कोशिश की पर वो नहीं मने और फोन काट दिया. दूसरी लड़की को भी फोन लगाने पर भी ऐसा ही कुछ सुनने को मिला. उसके भाई ने कहाँ की उन लोगो ने उन्हें वहां पढने के लिए भेजा था न की किसी लड़के को पीटने, पुलिस थाने और मीडिया के चक्कर में पड़ने के लिए. इतनी बदनामी हुई है की हम गाँव में सर नहीं उठा पा रहे है.
दोनों के परिवारों की बातें सुनकर मै फैसला नहीं ले पा रही थी की गलती किसकी है?
उन लड़कियों की जिन्होंने हिम्मत करके उन लडको को सबक सिखाया?