रविवार, 3 जुलाई 2011

काश...

                          वो जिंदगी मै बचा पाती




सुबह नहाने के बाद मै मंदिर पहुची ही थी क़ि अचानक एक कबूतर नीचे गिरा. मेरी नजर उस पर पड़ी तो वो घायल था. उसे खून निकल रहा था. आसमान में नजर पड़ी तो एक चील मंडरा रही थी,  मैंने सोचा कहीं यह चील कबूतर को उठा कर न ले जाये मैंने कबूतर को उठाया और दीवार के किनारे रखा. अभी मै मंदिर के अन्दर जा ही रही थी क़ि एक बिल्ली तेजी से कबूतर क़ि तरफ दौड़ी. मै बिल्ली पर चिल्लाई पर वो नहीं मानी मैंने अपनी चप्पल उतारकर बिल्ली पर फेंकी. बिल्ली भाग भाग गयी. मैंने सोचा अगर अब मै इसे यहाँ छोड़ती हूँ तो चील या बिल्ली इससे खा जाएगी. मै उसे उठंकर मंदिर के अन्दर ले गयी तो अन्दर बैठे पंडित जी मेरे ऊपर बरस पड़े. कबूतर के शरीर से बह रहे खून से उनके मदिर क़ि फर्श ख़राब हो रही थी. मुझे समाज नहीं आ रहा था क़ि क्या करूँ. मैंने मंदिर के बाहर बैठी प्रसाद वाली को  कबूतर देखने को कहा और मंदिर के अन्दर चली गयी. 
 मै दर्शन करके मंदिर से निकली ही थी क़ि देखा एक प्रसाद वाली किसी को प्रसाद देने में व्यस्त थी और सामने से एक कुत्ता कबूतर को घूर रहा था. शायद वो सही मौके की तलाश कर रहा था. अचानक वो कबूतर की तरफ लपका. मै उस कुत्ते को भागने के लिए दौड़ी लेकिन मै दूर थी. कुत्ता कबूतर तक लगभग पहुच ही चुका था. मुझे लगा अब मै कबूतर को नहीं बचा पाऊँगी. लेकिन सामने से आ रहा दूर कुत्ता भी कबूतर क़ि तरफ लपका. दोनों कुत्तो में झगडा होने लगा. मैंने कबूतर को उठाया और घर क़ि तरफ चल दी.
मुझे ख़ुशी हुई क़ि अब कबूतर क़ि जान बच जाएगी. मै मंदिर क़ि सीढियां उतार ही रही थी क़ि कबूतर फडफड़ाता हुआ मेरे हाँथ से नेचे गिरा और उड़ने क़ि कोशिश करने लगा इतने में ही एक कुत्ते ने उस पर जपट्टा मार उसे मुह में दबोच लिया. मैंने कुत्ते को भगाया तब तक कबूतर क़ि मौत हो चुकी थी.
मुझे बहुत दुःख हुआ क़ि मै उस बेचारे कबूतर क़ि जान नहीं बचा पाई कबुअतर मर चुका था इस लिए सोचा अब जिसे मर्जी वो उसे खा ले लेकिन वो मारा पड़ा रहा कुत्ते और बिल्ली सब उसे सूंघकर वापस चले गए. मुझे बहोत आश्चर्य हुआ क़ि अभी कुछ ही पल पहले जो कबूतर चील, बिल्ली, और कुत्तों के लिए इतना जरूरी था अब वो उसे सूंघकर वापस हो गए. आसमान में उड़ रहे उसके साथी पक्षी जो अभी उसके लिए चहचहा रहे थे वो भी चले गए. बेशक यह घटना कोई बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन मै दिन भर सोचती रही और अंत में कुछ बातें तो प्रूफ हो गयी.
1- जिसकी मृत्यु जब लिखी है, उसे कोई नहीं रोक सकता.
2 - इंसान हो या जानवर उसकी कीमत सिर्फ जिन्दा रहने तक ही है.
3 - मरने के बात कुछ देर रोने के बाद सब चले जाते है.  

मंगलवार, 31 मई 2011

दोषी कौन? 

हम आज चाहे कितना भी आगे बढ़ने क़ि बात करते हो लेकिन हमारे समाज क़ि मानसिकता आज भी नहीं बदली. शायद बदल भी नहीं सकती. लड़कियों के लिए समाज जैसा सालो पहले था वैसा आज भी है.


अभी हाल ही में कानपुर के कल्यानपुर थाने के पास एक घटना घटी. घटना बहोत बड़ी थी. दो लड़कियां अपने हॉस्टल से कानपुर यूनिवर्सिटी के लिए निकली. वो पैदल ही चौराहे क़ि तरफ आ रही थी. तभी पीछे से आ रही एक कार में बठे दो लडको ने उन पर कुछ कमेन्ट किया. लड़कियां आगे बढ़ी तो उन्होंने पीह करना शुरू कर दिया और आगे जाकर उन्हें गाड़ी में खीचने क़ि कोशिश की लड़कियां चीखी तो लड़कों ने मुह बंद करके उन्हें पीटा और गाड़ी से फेक कर भाग गए. लड़कियों ने पुलिस को खबर दी और पुलिस वालों ने उन्हें चौराहे पर पकड़ लिया. लड़कियों ने तहरीर दी और मीडिया ने दूसरे दिन उनकी बहादुरी की ख़बरें लिखीं. मुझे भी बहोत अच्छा लगा की शहर में दो लड़कियां उन वहशियों का शिकार होने से बच गयी.........

अभी जरा रुकिए ये बात यहीं ख़तम नहीं हुई. इसके आगे जो हुआ वो शायद आपको भी सोच में डाल दे. अगले दिन मैंने उन लड़ियों का स्पेशल interview लेकर पेपर में छपने की सोची मैंने सोचा की खबर पड़कर दूसरी लड़कियां इंस्पायर होगी. जब मै हॉस्टल पहुची तो उन लड़कियों के रूम पर ताला लटक रहा था. पूछने पर पता चला की उनके घर वाले आकर उन्हें ले गए. वो उन लड़कियों पर गुस्सा कर रहे थे. उन्होंने उनकी पढाई तक बंद करने की बात कही है.  मैंने बगल वाले रूम की लड़की से नंबर लेकर एक लड़की को फोन लगाया. फोन उसके पिता ने उठाया और मेरे ऊपर बिफर पड़े. बोले न तो उन्हें और न ही उनकी बेटी को मीडिया में आने का कोई शौक है. बहोत ज्यादा बदने हो चुकी है. अब वो उसकी पढाई बंद करा रहे है. मैंने उन्हें बहोत समझाने की कोशिश की पर वो नहीं मने और फोन काट दिया. दूसरी लड़की को भी फोन लगाने पर भी ऐसा ही कुछ सुनने को मिला. उसके भाई ने कहाँ की उन लोगो ने उन्हें वहां पढने के लिए भेजा था न की किसी लड़के को पीटने, पुलिस थाने और मीडिया के चक्कर में पड़ने के लिए. इतनी बदनामी हुई है की हम गाँव में सर नहीं उठा पा रहे है.
दोनों के परिवारों की बातें सुनकर मै फैसला नहीं ले पा रही थी की गलती किसकी है?
उन लड़कियों की जिन्होंने हिम्मत करके उन लडको को सबक सिखाया?

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

जीवन..........

वो पागल है फिर भी..........
कैंट से जाजमऊ जाने वाली रोड पर मै जा रही थी. धूप बहोत तेज थी. मै फोन करने के लिए अपनी गाड़ी किनारे छाया में लगा कर फोन मिलाने लगी. मेरी नजर सामने कूड़े के ढेर पर बैठे  तीस-बत्तीस साल के एक व्यक्ति पर पड़ी.  उसके दोनों पैरो में गहरे घाव थे. उन घाव पर सैकड़ों मक्खियाँ बैठी थी. कुछ मक्खियाँ उन घावो के ऊपर मंडरा रही थी, उन घावों में उनके बैठने क़ि जगह नहीं थी, शायद वो अपनी बार का  इंतज़ार कर रही थी. बीच- बीच में वो अपने गंदे हांथों से उन्हें उड़ाता पर मक्खियाँ उड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी. उसने अपनी गन्दी सी गठरी खोलकर उसमें से एक पोलिथीन निकली और फिर उसमे रक्खे कुछ पत्तल चाटकर फेंकने लगा. अचानक उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी. उसे देखकर लगा वो बहोत गुस्से में है. लेकिन पल भर में ही मुझे उसकी आँखों में एक डर नजर आया. शायद उसे लग रहा था क़ि या तो मै उसे कुछ कहूँगी या उसका खाना छीन लूंगी. उसने जल्दी से सरे पत्तल समेटकर उसी पोलिथीन में भर लिए. उसने मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुराया.
उस सड़क से सैकड़ो लोग गुज़र रहे थे पर कोई उसकी तरफ नहीं देख रहा था. उसे देखकर मै परेशान थी. वो परेशानी क्या थी मुझे नहीं पता? मै क्या सोच रही थी मै ये भी नहीं जानती. लेकिन न जाने क्यों मेरी आँखे उस पर से हट नहीं पा रही थी. पीछे खड़े जूस के ठेले वाले ने मेरे पास आकर कहा ''वो पागल है मैडम क्या हुआ? इसको जानती है क्या? पता नहीं कहाँ से आया है इसको लगभग एक साल हो गए.'' अचानक जैसे मेरी नींद टूटी हो मैंने गाड़ी स्टार्ट क़ि और वहां से चली आई. मै पूरा दिन परेशां रही और देर रात तक बस उसके बारे में ही सोचती रही. उसे इतने. गहरे घाव... तेज धूप में कूड़े के ढेर पर बैठा...उसके पास खाने को खाना तक नहीं......फिर भी उसे न तो कोई दर्द था न ही कोई शिकायत. हां शायद वो पागल था इसलिए........